۱۸ آبان ۱۴۰۳ |۶ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 8, 2024
मौलाना सय्यद साजिद मोहम्मद

हौज़ा / हज़रत अली का यह बयान एक ऐसी सामाजिक एकता की अपील करता है जिसमें हर व्यक्ति के अधिकारों और इज़्जत को बराबर माना जाए, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो। यह संदेश हमें याद दिलाता है कि हम सभी एक ही मानवता के परिवार का हिस्सा हैं, और हमें एक-दूसरे के साथ प्रेम और न्याय के साथ पेश आना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारा संबंध किस धर्म या जाति से है, क्योंकि मूल रूप से हम सभी इंसान हैं और इसी रिश्ते में बंधे हुए हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी!
लेखकः सैयद साजिद हुसैन रज़वी मोहम्मद

मानव इतिहास में कुछ ऐसे शब्द और कहावतें होती हैं जो समय और स्थान की सीमाओं से परे होकर हर दिल को छूती हैं और हर मन में प्रभाव डालती हैं। हज़रत अली का एक ऐसा ही बयान है, जो मानव मूल्यों और भाईचारे की महानता को उजागर करता है:

"الناس صنفان: إما أخ لك في الدين أو نظير لك في الخلق"
(लोग दो प्रकार के हैं: या तो वे तुम्हारे धार्मिक भाई हैं या फिर मानवता में तुम्हारे समान हैं)۔ यह क़ौल (कथन)नहजुल बलाग़ह के ख़ुतबा नंबर 53 में मौजूद है, जिसे हज़रत अली ने अपने वफादार साथी और मिस्र के गवर्नर, मालिक अशतर को दिए गए एक आदेश का हिस्सा बताया था।

यह कथन न केवल इस्लामी शिक्षाओं का प्रतिबिंब है, बल्कि इसमें ऐसी सर्वमान्य सच्चाइयाँ छिपी हैं जो हर धर्म, विचारधारा और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण हैं। दुनिया के विभिन्न धर्मों का मूल संदेश मानवता, प्रेम और समानता पर आधारित है, और हज़रत अली का यह बयान इन्हीं सिद्धांतों को स्पष्ट करता है। इस क़ौल के अनुसार, हर इंसान को उसकी जाति, या समुदाय की परवाह किए बिना सम्मान और इज़्जत देने की बात की गई है।

हज़रत अली का यह बयान एक ऐसी सामाजिक एकता की अपील करता है जिसमें हर व्यक्ति के अधिकारों और इज़्जत को बराबर माना जाए, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो। यह संदेश हमें याद दिलाता है कि हम सभी एक ही मानवता के परिवार का हिस्सा हैं, और हमें एक-दूसरे के साथ प्रेम और न्याय के साथ पेश आना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारा संबंध किस धर्म या जाति से है, क्योंकि मूल रूप से हम सभी इंसान हैं और इसी रिश्ते में बंधे हुए हैं।

यह कथन इस बात पर ज़ोर देता है कि एक शांत और समृद्ध समाज तभी स्थापित हो सकता है जब हम इंसानियत को प्राथमिकता दें। दुनिया के कई धर्मों में भी ऐसी शिक्षाएँ मौजूद हैं जो इंसानों के साथ दया, प्रेम और सम्मान का संदेश देती हैं, जैसे हिंदू धर्म में "वासुदेव कुटुम्बकम" यानी "पूरी दुनिया एक परिवार है" या ईसाई धर्म में "अपने पड़ोसी से प्रेम करो जैसे तुम स्वयं से करते हो" का संदेश।

हज़रत अली का यह बयान हमें हमारी साझा मानवता की याद दिलाता है और हमें सिखाता है कि दूसरों के साथ व्यवहार करते समय, हमें उनकी धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान के बजाय उनकी मानवता को ध्यान में रखना चाहिए। ये शिक्षाएँ न केवल मुसलमानों के लिए, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए एक उत्तम नैतिक आधार प्रदान करती हैं।

हज़रत अली का यह बयान आज के दौर में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां दुनिया भर में विभिन्न विश्वास और संस्कृतियों के लोग एक साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह संदेश हमें याद दिलाता है कि मतभेदों के बावजूद, मानवता का रिश्ता सबसे मजबूत है। यदि हम सभी इस सिद्धांत पर कार्य करें, तो हम एक बेहतर, शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां हर व्यक्ति को इज़्जत, प्रेम और समानता के साथ देखा जाए।

यह कहावत मानवता की एक ऐसी साझा नींव प्रदान करती है जो हर धर्म और जाति के लोग अपनाना पसंद करेंगे, क्योंकि यह हमें हमारे साझा नैतिक और मानविक कर्तव्यों की याद दिलाती है।

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